Sunday, May 27, 2012


तुम एक महकता गुलाब,
मै एक भंवरा आवारा,
सच्चे प्यार की तलाश में,
फिरता था मारा मारा,
गर मैं मर मिटा तुमपे,
तो इसमे मेरा क्या कसुर है?

तुम मृग की काली घटा,
मै एक मयुर प्यासा,
तुम आओगी मै नाचुंगा,
इतना तो था भरोसा,
इतना नाचा की पंख झड गये,
तो इसमे मेरा क्या कसुर है?

तुम एक लहराती सरीता,
मै एक किनारे का पथ्थर,
बाढ आयी और मुझे भिगोया,
बस वही पडा रहा जीवनभर,
साथ ना जा सका तुम्हारे,
तो इसमे मेरा क्या कसुर है?

तुम एक ओस की बुंद,
मै एक पेड का पत्ता,
तुम्हे पाने के लिए,
रात भर सर्दी में ठिठुरता,
सुरज आया और तुम्हे ले गया,
तो इसमे मेरा क्या कसुर है?

तुम गहरे सागर की सीप,
मै रेत का कण अदना सा,
तुमने ले लिया आगोश में तो,
जीवन बन गया सपना सा,
मोती बना तो लोग ले गये,
तो इसमे मेरा क्या कसुर है?