Monday, August 9, 2010

हमारी अधूरी कहानी

मेरे कज़िन का रिलाइयन्स का मोबाइल खराब हो गया था| मैं उसे लेकर नागपुर गया| रिलायंस के वेब वर्ल्ड में| सुबह की बात है| 9 बजे मैं वहाँ पहुँचा| तो वहाँ के एक लड़के ने कहा की जो इस काम को देखती है अभी आई नहीं| मैंने कहा मैं इंतजार करता हूँ| फिर आधे घंटे बाद आयी...एक साँवली लेकिन ब्यूटिफुल लड़की...सिंपल आउटफिट..जीन्स और शर्ट| घुँगराले बाल..कंधो पे खेलते हुए| आँखों में गजब का कॉन्फिडेन्स और होंठों पर बहुत ही प्यारी मुस्कान...ऊफ्फ मैं तो पलभर के लिए पलकें झपकाना तक भूल गया था...!


खैर वो मुझसे बोली...एक्सक्यूस मी..! आप मेरा इंतेजार कर रहे थे? कानों में जैसे मिठास घुल गयी| इतनी मीठी और सेक्सी आवाज़...? अपने धड़कते दिल पे काबू पाते हुए मैंने अपनी प्राब्लम बतायी| ओह..डोन्‍ट वरी..लेम्मी ट्राइ..इफ़ आय कॅन डू समथिंग..! उसके इन शब्दो से मैं होश में आया| मैंने क्या बताया मुझे मालूम ही नही था| जैसे मैं किसी ख्वाब में बातें कर रहा था| कुछ जगह फोन करने के बाद उसने बताया की जिस कंपनी का ये मोबाइल हैं उसका सर्विस सेंटर सिर्फ़ दिल्ली और मुंबई मे हैं| कुछ दिन लग सकते है फोन वापिस आने में...उसने अपना मोबाइल नंबर मुझे देकर जाने को कहा| हवा में उड़ता हुआ मैं घर कब पहुँचा पता ही नही| दूसरे दिन सुबह ही मैंने उसे फोन करने की बजे एसएमएस कर दिया| एण्ड वॉट ए सर्प्राइज़...? रिप्लाइ भी आ गया| फिर चालू हुआ एसएमएस का सिलसिला| जिसमें हम लोगो ने दुनिया भर के एसएमएस एक दूसरे को भेजे| अपनी कविताएँ मैं भेजता था, उसकी कविताएँ वो भेजती थी| आज भी मेरे और उसके पास वो डायरीज़ है जिनमे हमने एक दूसरे की कविताएँ लिख रखी हैं...


फिर वो नागपुर से अचानक दिल्ली चली गयी जॉब के सिलसिले में| वहाँ भी उसे रिलायंस में ही काम मिला|  वह रोज फोन पर मुझसे घंटो बातें करती थी| हम फोन पे हँसते, गाते, खिलखिलाते और रोते भी| हमारी दोस्ती अब सिर्फ़ एक लड़का लड़की की दोस्ती नही रही थी बल्कि अब वो एक प्योर् रीलेशन बन गयी थी| एक ऐसा रीलेशन जिसमे कोई अपने खास से कुछ नही छुपाता! हम हर बात शेयर करते...हर बात| चाहे वो सुख की हो या दुख की| अच्छी हो या बुरी| पर एक दूसरे के बिना हमें कुछ नही सूझता था| मेरे और उसके घरवालो को पता था की ये दोनो काफ़ी क्लोज़ फ्रेंड्स है| जब की हक़ीकत मे हम सिर्फ़ 2 बार मिले थे और वो भी वही रिलायंस वेब वर्ल्ड में| दोस्त मेरी हँसी उड़ाते की ऐसे कैसे किसीसे फोन पे दोस्ती हो सकती है| और अगर हो भी सकती है तो इतनी गहरी दोस्ती? इंपॉसिबल..! फिर वो दिन आया जब हमारी दोस्ती शुरू होने के एक साल बाद हम पहली बार कही बाहर मिलने वाले थे| (दो बार मिले थे पर वो रिलायंस वेब वर्ल्ड में मिले थे और वो भी मोबाइल के रिपेरिंग के बारे में)...


वो 26 जनवरी का दिन था| मैं बाइक से वर्धा से नागपुर गया उसे रेलवे स्टेशन पे रिसीव करने| सच मानो तो काफ़ी एक्साइटेड था| पार्किंग में अपनी डिस्कवर लगाई| अंदर गया| दिल धाड़ धाड़ बज रहा था| कहीं ट्रेन आकर निकल तो नहीं गयी..? कही वो मेरा इंतजार करके चली तो नहीं गयी.? पर शायद मेरा भगवान मुझपे खुश था| मैं अंदर पंहुचा और ट्रेन आ गयी| जैसे ही वो ट्रेन से उतरी.......उफ़फ्फ़...उस दिन कोई मेरी हालत देखता! दिल की धड़कनें इतनी तेज थी की मानो दिल पसलियों को तोड़कर बाहर निकलने को बेताब था| बेताब था उसके कदमो मे बिछ जाने को.,..| मेरी नज़र से तो ट्रेन से उतरने वाली सबसे खूबसूरत लड़की वो थी| बिल्कुल माधुरी दीक्षित लग रही थी| नज़र पड़ते ही हम एक दूसरे की ओर लपके...! पता नहीं पर कैसे...? बड़ी मुश्किल से हम रोक पाए थे एक दूसरे से लिपटने को| कुछ समय की शांतता पर फिर भी हमारी आँखे बातें कर रहीं थी आपस मे| कुछ कह रही थी...और वो सिर्फ़ दिल समझ रहें थे...


स्टेशन से बाहर निकले...पार्किंग से गाड़ी निकाली...पता नही होश में था या मदहोश...पर नो एंट्री से गाड़ी डाल दी| पुलिस ने पकड़ लिया| सिर मुंडाते ही ओले पड़ने का मतलब् उस दिन समझ मे आया| खैर पुलिस को अपना लाइसेन्स देकर जान छूडायी...और उसके घर के रास्ते पे चल निकले| पूरे रास्ते मैं सिर्फ़ लिसनर बना रहा| वो बोलती गयी...बोलती गयी मानों एक ही दिन में पूरे साल की बातें बताना चाहती हो| पता ही नहीं चला उसका घर कब आया| फिर उसके मम्मी पापा और परिवार! काफ़ी खुश हो गये थे वो लोग| पर मेरी खुशी का तो कोई ठिकाना ही नही था| उस रात उसके घर में मैं सो भी ना सका| फिर एक नयी सुबह आयी| और वो पूरा दिन हमनें एक दूसरे के साथ बिताया| दिन तो ढल गया...पर कभी ना भूलने वाली यादें देकर| मैं अपने घर लौट आया| कुछ खोकर...बहुत कुछ पाकर...! वो क्या था जो मैंने खोया था..? वो क्या था जो मैंने पाया था...? शब्दों में बयाँ नही कर सकता...! कभी कभी शब्द भी बेवफा बन जाते है....|


वो वापस दिल्ली चली गयी| सिलसिला फिर शुरू हुआ, एसएमएस का फोन कॉल्स का| एक बात बताना मैं भूल गया....वो रोज फोन पर मुझसे आई लव यू कहती थी...पर कभी मैंने नही कहा...| पता नही क्यों...? मेरी फ़ितरत भी देखो कैसी अजीब हैं जो कहना चाहता हूँ वो कह नही पाता...| और जो कहना नही चाहता वो मुँह से निकल जाता है....! मेरे एक दोस्त की बहन थी...डीओर्सी थी| दोस्त ने अपनी बहन की खुशियाँ माँगी मुझसे...! मना नही कर सका....| अपने कुछ फ़ैसले मैं खुद लेता हूँ| ऐसे ही मैंने एक बहुत बड़ा फ़ैसला खुद ले लिया...अपनी शादी का| एक दिन घर मे ऐलान कर दिया की मैं एक डीओर्सी से शादी करूँगा! घरवाले सकते में आ गये...समझाने की बहुत कोशिशें की मुझे| पर मेरा फ़ैसला अटल था| उस दिन फोन पे मैंने उसे मेरे फ़ैसले के बारें में बता दिया| फोन पर हँसती खिलखिलती आवाज़ एकदम से बंद...! पूरे 3 मिनिट्स तक वो कुछ भी नही बोली...फिर अचानक रोना चालू कर दिया| रोते रोते उसने जो बताया...उसे सुन कर मैं पागल हो उठा| दिल में आया की जाकर वो वादा तोड़ दूँ जो मैने अपने दोस्त से किया हैं|
तोड़ दूँ वो संकल्प जो मैंने लिया था| किसी बेसहारा का घर बसाने का...जो मेरे बिना जी नहीं सकती उसे लेकर चला जाऊँ कही दूर...बहुत दूर...! जहाँ कोई ना आए हमारें बीच...| पर क्या इंसान जो सोचे वही होता हैं? शायद नही इसीलिए तो इंसान भगवान को मानता हैं| मेरी उस भूल ने उसको कही का ना छोड़ा| मैं बदनसीब यही समझता रहा की जो मैं अपने दिल में महसूस कर रहा हूँ वो सिर्फ़ मेरा प्यार हैं...! मेरा एकतरफ़ा प्यार..! और जो आई लव यू वो कहती हैं वो एक दोस्त के लिए हैं....| बस यही ग़लती हो गयी मेरी! मैं अपने दिल की बात कह ना पाया उससे....! और वो कहती थी तो उसे समझ ना पाया...मेरी शादी में भी वो आई | मेरे साथ साथ रहीं... अपने हाथों से मुझे मेहंदी लगाई, हल्दी लगाई,..और हम खूब रोए भी...आज मेरी वाइफ को ये सब बातें पता हैं...| पर वो इतना जानती हैं की हमारें दिल में पाप नही हैं और ना मैं उसके बारें में कुछ ग़लत सोच सकता हूँ...| वो आज भी मेरी बेस्ट फ़्रेंड हैं और रहेगी| आज मैं अपने फॅमिली में खुश हूँ....जैसे वो भी हैं....शायद ! मैं बहुत खुशकिस्मत हूँ....बहुत खुशकिस्मत...की वो मुझे मिली....|

याद

रात के 2 बज रहे हैं... मैं अपने पंप के रूम में बेड पे लेटा हुआ हूँ| आज धुलेंडी हैं| दिल में एक याद अपने बीबी बच्चों की| मुझे याद हैं वो दिन...पिछ्ले साल का..! उस दिन भी होली की धुलेंडी थी| मेरी शादी के बाद पहली होली...! मैं उन यादों में खोया हुवा हूँ| क्या खूब होली खेला था मैं अपनी बीबी और बच्चे के साथ..! पूरे नवोदय के कॅंपस में होली चल रही थी| स्कूल के बच्चे मस्ती के साथ एक दूसरे के उपर रंग डाल रहे थे| हम पति पत्नी भी अपने बच्चे के साथ होली खेलने बाहर निकल आए| खूब रंग उड़ाया! गुलाल का तो मानो बादल छा गया था कॅंपस में| मेरा बेटा अंशुल काफ़ी स्मार्ट हैं...! उसने औरों को रंग लगाने से पहले हम दोनों के चरण स्पर्श किए, हम दोनों को गुलाल लगाया, और फिर पता नही उस नन्हे शैतान को अचानक क्या सूझा...! हमें कहा की अब आप एक दूसरे को गुलाल लगाओ...हेहेहे...क्या शरमा गयी थी वीनू उस दिन जैसे कल ही हुमारी शादी हुई हो| उस दिन की एक एक याद दिल मे बसी हैं| आज भी होली हैं! पर मैं अकेला हूँ...अपने परिवार से सैकड़ों मैल दूर...! दिल में एक टीस सी उठ रही हैं...! क्‍यों मेरे साथ ऐसा हुआ...? क्‍यों भगवान ने एक हाथ से खुशियाँ देकर दूसरे हाथ से छीन ली...? अपनी 2 महीनो की बच्ची को छोड़के क्यो यहा पड़ा हूँ मैं...? अकेला...बिल्कुल अकेला...! दिल रो रहा हैं...! आँसू पलको के किनारों पे आके रुके हुए है....जैसे बाहर निकालने को बेताब...! रोना चाहता हूँ...! पर...पर...किसिका कंधा नही हैं मेरे पास रोने के लिए...! किसी के हाथ नही हैं उन आँसुओ को पोंछने के लिए जो बेताब हैं बाहर निकालने को| अकेला...बिल्कुल अकेला महसूस कर रहा हूँ मैं| रोने को बहुत दिल कर रहा हैं...बहुत| पर....फिर याद आता हैं, मर्द को कभी दर्द नही होता...मर्द कभी रोया नही करते| कौन कहता हैं मर्द को दर्द नही होता..? कौन कहता हैं मर्द कभी रोया नही करते...? देख लो मैं रो रहा हूँ...! उन लम्हों को याद करके जो पिछले साल मैंने अपने फॅमिली के साथ गुज़ारे थे| मैं रो रहा हूँ...! अपने बेटे को याद करके जो कभी मेरे बगैर खाना नही ख़ाता था..! मैं रो रहा हूँ अपनी बेटी को याद करके जिसे मैं 15 दिन की छोड़के यहाँ आया था...मैं रो रहा हूँ...सच्ची...मैं रो रहा हूँ.....!